आंखें नहीं पर फिर भी हौसला कायम रखा, अब एसबीआई में क्लर्क

जांजगीर. ईश्वर ने आंखे नहीं दी, फिर लक्ष्य स्पष्ट था, इसलिए दीपक ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में डिग्री की पढ़ाई छोड़कर आईटीई आईबीएम इंस्टीट्यूट से प्रोफेशनल कोर्स की डिग्री लेने के साथ-साथ कंप्यूटर की ट्रेनिंग ली फिर डिस्टेंस से डिग्री हासिलकर परीक्षाएं पासकर पहले बैंक पीओ फिर क्लर्क बने। चांपा कुरदा निवासी 34 साल का दीपक साहू अब दिव्यांगों के लिए रोल मॉडल है। जन्म के बाद डॉक्टरों ने देखते ही परिजन से कह दिया था कि दीपक कभी नहीं देख सकेगा। माता-पिता डॉक्टरों की बात से निराश थे, लेकिन थोड़े समय बाद उन्होंने दीपक को आत्मनिर्भर बनाने की ठानी और 8 साल की उम्र में बिलासपुर के दृष्टिबाधित स्कूल में भर्ती कराया। 8वीं के बाद छत्तीसगढ़ के दृष्टि बाधित स्कूल में आगे की पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं थी, इसलिए दीपक के परिजन ने दिल्ली जेपीएम स्कूल में दाखिल कराया। यहां 12 वीं तक पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया, लेकिन डिग्री से कुछ खास हासिल होने वाला नहीं था इसलिए दीपक ने डिग्री की पढ़ाई छोड़कर इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी एंड इजीनियर्स कॉलेज के प्रोफशनल डिप्लोमा कोर्स में एडमिशन लिया। साथ ही गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिलकर घर में ही कंप्यूटर की मदद से बैंक पीओ और क्लर्क की तैयारी शुरू की। परीक्षा पास कर पहले वे बैंक पीओ बने फिर दूसरी परीक्षा पासकर चांपा एसबीआई में क्लर्क की नौकरी कर रहे हैं। दृष्टिहीनता को कभी काम में बाधक नहीं बनने दिया, यही कारण है कि उनके काम से सहयोगी बैंक कर्मी भी खुश हैं। दीपक अपने काम और पढ़ाई के साथ परिवार को समय देना पंसद करते हैं। बैंक पीओ में काम का लोड ज्यादा होने से यह तीनों काम कर पाना संभव नहीं है, इसलिए उन्होंने क्लर्क की नौकरी करने का निर्णय लिया, और उसमें सफलता पाई।
शादी के 8 साल बाद हुई थी पहली संतान – पिता साहेब लाल साहू ने बताया कि शादी के 8 साल पहले उन्हें पहली संतान उनकी बेटी हुई। दो साल बाद दीपक का जन्म हुआ, घर में लड़के के जन्म से खुशी का माहौल था, लेकिन दीपक ने जब आंखे नहीं खोली तो उन्होंने डॉक्टर को घर बुलाया, डॉक्टर ने जांच के बाद कहा कि दीपक कभी देख नहीं सकेगा। भगवान ने उसे आंखे ही नहीं दी है।
तीसरी दृष्टि तेज… वाइस कमांड से ऑफिस व घर में चलाते हैं कंप्यूटर
दीपक कम्प्यूटर के वाइस कमांड के जरिए ऑफिस और घर पर कंप्यूटर ऑपरेट करते हैं। कौन सी चीज कहां और कितनी दूरी पर है, इसका अनुमान वे अपने कदमों से लगाते हैं। बगैर की-बोर्ड को देखे इंग्लिश टायपिंग तक कर लेते है। कंरट अफेयर्स से अपडेट रहने के लिए रोज ऑडियो सुनते हैं। मोबाइल पर रोजाना दैनिक भास्कर एप पर समाचार भी सुनते हैं।
हौसला नहीं छोड़ा… 2010 में इंटरव्यू में नहीं पहुंच सके थे
पहली बार दीपक ने 2010 में बैंक पीओ की परीक्षा पास की थी। जयपुर उन्हें इंटरव्यू के लिए जाना था, लेकिन इसकी सूचना उन्हें देर से मिली और वो चूक गए। इसके बाद 2012 में एसएससी की परीक्षा पास की, फिर 2015 में फिर से बैंक पीओ एग्जाम क्लियर किया, लेकिन इंटरव्यू में कट गए। 2016 में दो नंबर से पीछे रह गए। इसी वर्ष उन्होंने एसबीआई क्लर्क का एग्जाम क्लियर किया।
सब सोच का फर्क है, सफलता कोई भी प्राप्त कर सकता है
“सब सोच का फर्क है। मेरी सोच ही निगेटिव हो जाती तो मैं कभी सफल नहीं हो पाता। डॉक्टरों ने मेरे जन्म लेते ही माता पिता से कह दिया था कि मैं कभी देख नहीं पाऊंगा। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और मैने कभी अपने ऊपर निगेटिविटी हावी नहीं होने दी।”
-दीपक साहू, कुरदा ग्राम पंचायत चांपा
साभार: दैनिक भास्कर

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