केराझरिया में 100 को पूजा की अनुमति, कल शाम देंगे पहला अर्घ्य
नहाय-खाय से चार दिवसीय छठ पूजा की हुई शुरुआत
जांजगीर-चांपा. सूर्य उपासना का चार दिवसीय महापर्व बुधवार 18 नवंबर को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। छठ पर्व की विशेषता है कि न तो किसी मंदिर में पूजा के लिए कोई जाता है और न ही कोई मंत्र है, न जाप है न छुआछुत है। एक ही जल स्त्रोत में विभिन्न जाति वर्ग के लोग एक साथ पर्व मनाते हैं। इस व्रत में भक्त और भगवान के बीच कोई तीसरा माध्यम नहीं है। इस बार कोरोना के कारण छठ पूजा में भी भीड़ करने की मनाही है। केराझरिया में छठ पूजा के लिए एसडीएम मेनका प्रधान द्वारा केवल 100 लोगों की अनुमति दी गई है। छठ पूजा के दूसरे दिन गुरूवार 19 नवंबर को लोहंडा-खरना होगा। शाम को गुड़-दूध की खीर और पूड़ी बनाकर छठ माता का भोग लगाया जाएगा। इसके बाद उसी प्रसाद को घर के सभी सदस्यों और ब्राह्मणों को दिया जाता है। खरना के साथ ही व्रती महिलाओं का 36 घंटे का उपवास शुरू हो जाएगा। तीसरे दिन 20 नवंबर को डूबते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाएगा। छठ माता के पूजन के साथ ही संध्या के समय महिलाएं घाटों पर जाकर अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देंगी। विशेष प्रकार के पकवान, ठेकवा और मौसमी फल चढाएं जाएंगे। सूर्य को अर्घ्य देते समय प्रसाद सूप में रखंेगे।
छठ से जुड़ी खास बातें
माताएं पुत्र की प्राप्ति के लिए 4 दिन तक छठ मइया और सूर्य की उपासना करतीं हैं।
यह ऋग वैदिक कालीन पर्व है। विष्णु पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण, भगवत पुराण में वर्णन।
नेपाल, फिजी, मॉरिशस, सूरीनाम, गुयाना जैसे देशों में भी लोग इसे धूमधाम से मनाते हैं।
यह एकमात्र ऐसा पर्व जिसमें न केवल उगते, बल्कि डूबते सूर्य की भी पूजा होती है।
छठ पर्व पर क्यों की जाती है सूर्य की आराधना
छठ पूर्व में सूर्य की आराधना का बड़ा महत्व है, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठी माता को सूर्य देवता की बहन माना जाता है. कहा जाता है कि छठ पर्व में सूर्य की उपासना करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति तथा संपन्नता प्रदान करती हैं।
छठ व्रत से मिलता है फल
छठी पूजा करने से नि:संतान दंपती को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
छठी मैया संतान की रक्षा करती हैं और उनके जीवन को खुशहाल रखती हैं।
छठ पूजा करने से सैकड़ों यज्ञों के फल की प्राप्ति होती है।
परिवार में सुख समृद्धि की प्राप्ति के लिए भी छठी मैया का व्रत किया जाता है।
छठी मैया की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
हिंदू धर्म में यह पहला ऐसा त्योहार है जिसमें डूबते सूर्य की पूजा की जाती है.
इस बार शाम का अर्घ्य 20 नवंबर को है. इस दिन नदी, तालाब में खड़े होकर ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. फिर पूजा के बाद अगली सुबह की पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। सुबह अर्ध्य देने के बाद व्रत तोड़ते हैं।
क्या है छठ
बड़े मठ चांपा के पुजारी पंडित कृष्णधर मिश्रा ने बताया कि षष्ठी देवी को छठी मइया कहते हैं। पुराने ग्रंथों के अनुसार परमात्मा ने सृष्टि की रचना के लिए स्वयं को दो भागों में बांटा है। दाहिने भाग में पुरुष और बायें भाग में प्रकृति का रूप सामने आया। ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड में बताया गया है कि सृष्टि की अधिष्ठात्रि प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश छठा अंश होने से इनका प्रचलित नाम षष्ठी है।