कोरोनाकाल में लोगों को ऑक्सीजन की कमी देख पेड़ वाली आंटी ने कचरे से पेड़ों को निकाल तालाब-सड़कों तक पहुंचाया, अब तक लगाए 1 हजार से ज्यादा पौधे पौधों की देखभाल करती “पेड़ वाली आंटी”

पहले कई तरह के डर दिखाए, 54 साल की अल्पना देशपांडे का अब लोग दे रहे साथ
रायपुर. आपने घरों की दीवारों के बीच या कचरे में इधर-उधर कई बरगद और पीपल के अचानक उगे हुए पौधों को देखा होगा। आमतौर पर लोग इन्हें नज़रअंदाज कर देते हैं या उखाड़कर फेंक देते हैं, लेकिन रायपुर के टैगोर नगर की अल्पना देशपांडे इन पौधों को कचरे से निकालती हैं, गमले में देखभाल करती हैं और फिर जब ये थोड़े बड़े हो जाते हैं, तो उन्हें तालाब या फिर सड़कों के किनारे लगा देती हैं।
दरअसल कोरोनाकाल में जब उन्होंने देखा कि लोगों को आक्सीजन की कमी हो रही है, तब उन्हें यह ख्याल आया। पीपल और बरगद दोनों में भरपूर आक्सीजन होता है, इसलिए इन दोनों के पौधों को अल्पना ने विकसित किया। अल्पना पिछले आठ महीने से इस मुहिम में लगी हैं। अब तक उन्होंने करीब एक हजार ऐसे पौधों को सड़कों के किनारे लगाया है। 54 साल की अल्पना देशपांडे को इसी कारण पेड़ वाली आंटी कहकर भी बुलाते हैं। बरगद-पीपल के विषय में कई भ्रांतियों को दरकिनार करते हुए उन्होंने इन्हें अच्छे स्थान पर नया जीवन देने का काम किया है। अल्पना का मानना है कि ये पेड़ बहुत अधिक मात्रा में ऑक्सीजन देते हैं। पीपल और बरगद के पाैधे अक्सर घर की छत, दीवार या किसी नाले के किनारे लगे दिख जाते हैं। सही जगह और देखभाल न मिलने के कारण ये ठीक से बढ़ नहीं पाते। अल्पना ने घर में ही नर्सरी बना ली है। इन पाैधाें के दाे-दो फीट होने तक अपनी नर्सरी में उनकी देखभाल करती हैं।
जब ये पौधे दो फीट के हो जाते हैं, तब उन्हें तालाब के किनारे या किसी ग्राउंड में लगा देती हैं, ताकि उनका बेहतर विकास हो सके। अल्पना ने आठ महीने पहले से ये पहल शुरू की थी। पिछले आठ महीने में वे 1 हजार से ज्यादा पौधे अपने घर में संरक्षित करने के बाद तालाब और मैदान में लगा चुकी हैं। अभी नर्सरी में 200 पौधे तैयार हो रहे हैं।
अल्पना भिलाई स्थित डाॅ. खूबचंद बघेल शासकीय कॉलेज में होम साइंस डिपार्टमेंट की प्रोफेसर हैं। वे एनएसएस की कार्यक्रम अधिकारी भी हैं। उन्हाेंने सारे पाैधे रायपुर और भिलाई के आसपास स्थित गांवाें में राेपे हैं। अल्पना ने बताया, कोरोना के दाैर में अपने परिचिताें को ऑक्सीजन के लिए तड़पते देखा, तब पीपल और बरगद के ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने और संरक्षित करने का निर्णय लिया। वैज्ञानिकों के अनुसार बरगद और पीपल के पेड़ दिनभर में 20 से 22 घंटे ऑक्सीजन देते हैं।
लोगों ने पहले कहा- पाप लगेगा
अल्पना ने बताया, लॉकडाउन खुलने के बाद मैं रोज सुबह वॉक के लिए निकलती और दीवार या नालों के किनारे जहां भी पीपल और बरगद के पौधे दिखते, उन्हें निकालकर घर पर ले आती। जब ये बात लोगों को पता चली तो उन्होंने ये दोनों पौधे उखाड़कर न लाने, पाप लगने जैसी बातें कहीं। तब मैंने सबको यही समझाया कि इन पौधों को उखाड़कर फेंक नहीं रही, बल्कि संरक्षित कर बेहतर जगह रोप रही हूं, ताकि ये विशाल पेड़ बनकर हजारों लोगों को ऑक्सीजन दे सकें। कुछ दिनों में जब काम की तारीफ होने लगी, तो डर दिखाने वाले लोग भी सहयोग करने लगे। अल्पना अब तक चंगोराभाठा, महादेव घाट, पाटन के आसपास के गांव, चोरहा गांव, सिरसाकला, भिलाई, चरोदा, जरवाय रोड जैसी जगहों पर पौधे लगा चुकी हैं।

साभार: दैनिक भास्कर

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