कोरोनाकाल में 477 किलो दवाइयों का हुआ उपयोग, पहले 25 किलो थी खपत

इलाज के लिए लोगों में आयुर्वेद के प्रति बढ़ा विश्वास

रायगढ़. कोरोना के संक्रमणकाल में आयुर्वेद दवाओं की डिमांड बढ़ा दी है। पहले सात माह में आयुर्वेदिक दवाओं की 25 किलो ही खपत थी, जो अब बढ़कर 477 किलो तक पहुंच गई है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से इलाज कराने के प्रति लोगों में रुझान बढ़ा है। आयुष मंत्रालय ने कोरोना संक्रमण को देखते हुए कोविड- 19 महामारी की थीम रखी है। आयुर्वेदिक हॉस्पिटल में संक्रमण से खतरे से बचने के लिए एलोपैथी दवाओं को छोड़कर इम्यूनिटी बुस्टअप, च्यवनप्राश, गिलोय और बुखार से बचने के लिए अमृता शिष्ट जैसी आयुर्वेदिक दवाएं खा रहे हैं। डॉक्टरों के अनुसार लोग पहले सिर्फ सर्दी, खांसी बुखार जैसी अन्य बीमारियों के लिए लोग आयुर्वेद से इलाज करते थे, पर अब आयुर्वेद के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है। अब हर वर्ग के लोग बुखार, पैर हाथ में दर्द जैसे कोई लक्षण दिखते है तो आयुर्वेद से इलाज करके इनकी दवाएं ले रहे है। आयुर्वेद हॉस्पिटल से मिली जानकारी के अनुसार कोरोना संक्रमण के बाद पहले त्रिकूट चूर्ण सांस बीमारियों सुरक्षा के लिए होता है। 60 किलो दवाएं एक साल में खत्म होती थी पर इस साल 7 माह में 477 किलो दवाएं खत्म हो गई है। इसी तरह इम्यूनिटी पॉवर बढ़ाने के लिए गुडुच्वादिपावाध 2018 में 47 किलो और 2019 में 25 किलों खपत हुई थी, लेकिन इस वर्ष संक्रमण के बाद अप्रैल से लेकर अक्टूबर तक 7 माह में 125 किलों दवाओं की खपत हो चुकी है।
आयुर्वेदिक दवाओं के व्यापारी एनके अग्रवाल बताते हैं कि च्यवनप्राश पिछले वर्ष एक माह में 10-20 डिब्बे ही बेच पाते थे जो अब हर माह एक दवा दुकान में 60 डिब्बों की खपत हो जा रही है। संक्रमण के बाद लोग काढ़ा ले रहे है, इसे देखते हुए आयुर्वेद में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए गिलोय धन बंटी इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए कुछ दिनों पहले मार्केट में आया है, हर माह 100 से ज्यादा डिब्बे बिके रहे हैं। हालांकि अब इस माह इसकी ब्रिक्री कम हुई है। अमृताशिष्ट पिछले माह तक 5 पेटियां बिकती थी, जो अब 30 पेटियों तक बिकी है। यह दवा बुखार के लिए होता है, संक्रमित होने के बाद जिन्हें कोई लक्षण दिख रहा है वे यह दवाई ले रहे है।
आयुर्वेद में भी अब नई दवाओं पर हो रहा है रिसर्च
“सर्दी, बुखार जैसे लक्षण के लिए लोग आयुर्वेद में इलाज करने के लिए आते थे, अब कोरोना संक्रमण के बाद आयुर्वेद की महत्ता बढ़ी है। ऐसा पहली बार देखने को मिला है, इसमें अब नई दवाएं रिसर्च होने लगी है। आयुर्वेदिक दवाएं उपयोग होने से मृत्यु दर भी कम हुआ है। अब आयुर्वेद को अब युरोप भी अपनाने की बात कह रहा है, संक्रमण बढ़ने की वजह से लोग इसका आयुर्वेद उपयोग कर रहे है।”
-डॉ नीरज मिश्रा, आयुर्वेद विशेषज्ञ, आयुर्वेदिक हॉस्पिटल
साभार: दैनिक भास्कर

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