10 एकड़ में टमाटर की खेती, 12 लाख रु. तक आमदनी

बंजर जमीन को हाइटेक पद्धति से कृषि योग्य बना गढ़उमरिया के युवा किसान कमा रहे लाखों
रायगढ़. जिले में धान की भरपूर पैदावार है वहीं कुछ किसान कैश क्रॉप की खेती कर रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में कुछ युवा किसान नई तकनीकी से कम लागत में बेहतर सब्जी उत्पादन में लगे हैं। ऐसे ही एक किसान गढ़उमरिया के सागर चौधरी हैं। 10 एकड़ टिकरा बंजर जमीन को तैयार कर टमाटर की हाईटेक खेती के जरिए वे प्रति एकड़ डेढ़ लाख रुपए तक कमाते हैं। 30 दिन में पौधों पर फल लगने लगते हैं। एक एकड़ पर कम से कम 500 कैरेट टमाटर का उत्पादन होता है।
हाइटेक खेती मुनाफे की गारंटी- यह कमाल सिर्फ मेहनत से नहीं बल्कि खेती में ड्रिप, मलचिंग, स्टेकिंग जैसी अन्य विधियों का इस्तेमाल करने से हो सका है। किसान अब खेत में लगी फसल की सिंचाई ड्रिप सिस्टम से करता है। इससे कम पानी में अधिक रकबे की फसल सिंचित हो जाती है। शुरुआत में ज्यादा खर्चा होता है और ड्रिप इरीगेशन सिस्टम के बाद सिर्फ खाद बीज और मजदूरी पर ही खर्च होता है। आधुनिक तरीके से उत्पादन कर ज्यादा लाभ कमाया जा सकता है ।
प्रति एकड़ 45 हजार लागत
टमाटर उत्पादन के लिए प्रति एकड़ 40 से 45 हजार रुपए की लागत आई है। प्रति एकड़ एक से सवा लाख रुपए तक आमदनी की उम्मीद है। पहली बार की खेती में 45 हजार के लगभग खर्च होता है। बीज की लागत 4000, बांस के डंडे की लागत लगभग 8000, रस्सी और प्लास्टिक मिलाकर इनकी लागत लगभग 8000, मजदूरी, खाद, भूसा और कीटनाशक मिलाकर लगभग 25 हजार तक लागत आती है। अभी करिश्मा हाइब्रिड टमाटर लगाया गया है। कई पौधे विकसित हो रहे हैं, अगले महीने तक अच्छी पैदावार की संभावना है।
एक एकड़ में 25 से 30 क्यारियांं, फल तोड़ने में आसानी
टमाटर लगाने के लिए क्यारी बनाई गई है। जो जमीन से 10 से 15 सेंटीमीटर उठे हुए रहते हैं। जिससे इनमें पानी इकट्ठा ना हो सके। एक से दूसरे की दूरी 4 फीट के लगभग रखी गई है ताकि फल तोड़ने और खरपतवार निकालने में कोई परेशानी ना हो। एक एकड़ में 25 से 30 क्यारियां बनती हैं जो सामान्यतः खेत की लंबाई चौड़ाई पर निर्धारित होती है। क्यारी में मिट्टी, गोबर खाद और भूसा मिलाकर उसको डीएपी और पोटाश से उपचारित किया गया है। फिर क्यारियों में प्लास्टिक ढक दिया जाता है। 1 फीट के अंतराल में छोटे-छोटे गोल गोल छेद बनाकर उसके अंदर ही पौधों को लगाया गया है । पौधों को सहारा देने के लिए बांस का डंडा लगाया जाता है। पौधे बड़े होते हैं तो फल के बोझ से टूट न जाएं इसलिए डोरियों से सहारा दिया जाता है। इसी तकनीक को स्टेकिंग कहते हैं। हर एकड़ के लिए अलग-अलग ब्लॉक बनाकर सिंचाई की जाती है ताकि जहां जितनी जरूरत हो उतना ही पानी पहुंच सके ।
साभार: दैनिक भास्कर

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