ठेकेदार काम लेने के लिए कम दर पर भरते हैं टेंडर, फिर नुकसान के डर से नहीं करते हैं काम डिग्री कॉलेज में अब तक शुरू नहीं हुआ मरम्मत का काम।
रायगढ़. पीडब्ल्यूडी ने डिग्री कॉलेज का काम 28 प्रतिशत बिलो में दिया, अब बिलासपुर मुख्यालय को रिटेंडर करने के लिए कहा
ठेकेदार काम लेने के लिए स्वीकृत दर से कम दर यानि बिलो प्राइज पर टेंडर ले रहे हैं फिर बाद में नुकसान बताकर काम नहीं कर रहे हैं । इससे जिले में कई प्रमुख काम महीनों से अटके हुए हैं। विभाग ऐसे लोगों पर कार्रवाई की बात तो करता है पर पांच साल पहले निर्धारित की गई दरों को संशोधित नहीं कर रहा है। कुछ कामों के लिए ठेकेदार भी नहीं मिलते और विभाग को बार-बार रिटेंडरिंग करनी पड़ती है।
ठेका कंपनियों के बीच काफी ज्यादा स्पर्धा होने की वजह से ठेकेदार काम हासिल करने के लिए बिलो पर टेंडर लेते हैं। काम मिलने के बाद हिसाब लगाने पर जब उन्हें लगता है कि इस काम में नुकसान होगा तो पीडब्ल्यूडी के साथ एग्रीमेंट नहीं करते हैं। इसकी वजह से काम भी नहीं हो पा रहा है।
ठेकेदार काम लेने के लिए स्वीकृत दर से कम दर यानि बिलो प्राइज पर टेंडर ले रहे हैं फिर बाद में नुकसान बताकर काम नहीं कर रहे हैं । इससे जिले में कई प्रमुख काम महीनों से अटके हुए हैं। विभाग ऐसे लोगों पर कार्रवाई की बात तो करता है पर पांच साल पहले निर्धारित की गई दरों को संशोधित नहीं कर रहा है। कुछ कामों के लिए ठेकेदार भी नहीं मिलते औरविभाग को बार-बार रिटेंडरिंग करनी पड़ती है।
ठेका कंपनियों के बीच काफी ज्यादा स्पर्धा होने की वजह से ठेकेदार काम हासिल करने के लिए बिलो पर टेंडर लेते हैं। काम मिलने के बाद हिसाब लगाने पर जब उन्हें लगता है कि इस काम में नुकसान होगा तो पीडब्ल्यूडी के साथ एग्रीमेंट नहीं करते हैं। इसकी वजह से काम भी नहीं हो पा रहा है।
थोड़ी परेशानी होती है लेकिन ठेकेदार काम करते हैं
बिलो रेट में काम लेने के बाद थोड़ी परेशानी होती है, लेकिन ठेकेदार काम करते हैं। एग्रीमेंट होने के बाद वर्क ऑर्डर जारी किया जाता है । यदि काम नहीं करते है तो उनमें रिटेंडर करते है, हालांकि बजट मिलने को लेकर भी परेशानी रहती है । डिग्री कॉलेज में अभी वर्क ऑर्डर जारी नहीं किया गया है। इसका प्रोसेस अभी चल रहा है।”
आरके खामरा, ईई, पीडब्ल्यूडी
पांच साल में रिवाइज होते हैं रेट
पीडब्ल्यूडी के एक रिटायर्ड इंजीनियर आरपी मिश्रा कहते हैं, नियम के मुताबिक शेड्यूल ऑफ रेट (एसओआर) हर पांच साल में बढ़ाना पड़ता है। पांच सालों में सामग्री की कीमतें बढ़ जाती हैं इसलिए यह जरूरी है। 2015 में नई दर तय हुई जिसके बाद संशोधन नहीं हुआ है। तब से अब तक सामग्रियों की कीमत 10 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गई है । इससे या तो कोई ठेकेदार काम नहीं लेगा या काम ले ले तो ईमानदारी से काम करना मुश्किल है।
तीसरी बार टेंडर होने के बाद शुरू नहीं हुआ काम डिग्री कॉलेज में 64 लाख रुपए में कॉलेज के रिनोवेशन करने, बाउंड्रीवाल निर्माण और मरम्मत कराने के लिए 28 फीसदी बिलो में रायपुर की एक कंपनी ने इसका काम लिया था । पीडब्ल्यूडी इंजीनियरों ने काम शुरू करने के लिए कहा तो ठेकेदार ने काम करने में रुचि नहीं दिखाई और नुकसान होने की बात कही। एक महीने में काम शुरू नहीं होने पर पीडब्ल्यूडी अफसरों ने काम की रिटेंडरिंग के लिए बिलासपुर भेज दिया । विभाग के मुताबिक पहले इसी काम के लिए दो बार टेंडर पहले भी जारी हो चुका है, रिटेंडर की स्थिति बनी ।
टेंडर हासिल करने के बाद एग्रीमेंट भी नहीं किया धरमजयगढ़ की सिसरिंगा घाटी के साढ़े चार किलोमीटर और घरघोड़ा में डेढ़ किलोमीटर की सड़क 3 करोड़ रुपए में बनानी है । सड़क बनाने के लिए बारिश के पहले टेंडर हुआ था, बाहर की एक ठेका कंपनी को काम दिया गया, लेकिन कंपनी ने इसे करने से इनकार कर दिया। टेंडर हासिल करने के बाद एग्रीमेंट भी नहीं किया, जिसके बाद फिर से टेंडर प्रोसेस हुआ फिर सारंगढ़ के एक ठेका कंपनी को इसका काम दिया गया । 9 महीने बाद इसका काम अब इसका काम शुरू करने की तैयारी की जा रही है ।
साभार: दैनिक भास्कर