“कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है।” “संसार के कोष में ऐसा कोई भी रत्न नहीं होता जिसे शुद्ध पुरुषार्थ के द्वारा किए गये कर्मों से प्राप्त नहीं किया जा सके।” – औघड़ संत शिरोमणी बाबा प्रियदर्शी राम जी

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