तिथियां सूर्योदय व्यापिनी होती हैं तो नवमी और विजयादशमी एक ही दिन कैसे मान्य!
रायपुर. नवरात्रि की अंतिम तिथियों को लेकर इस बार असमंजस की स्थिति है। कोई शुक्रवार को अष्टमी मनाने की बात कह रहा है तो कोई शनिवार को। यही उलझन नवमी और विजयादशमी को लेकर भी है। कोई दोनों को एकसाथ मनाने की बात कह रहा है तो कोई अलग-अलग दिन। जानिए तिथियों की इस उलझन पर क्या है जानकारों की सलाह…
सवाल – अष्टमी-नवमी का निर्धारण सूर्यादय से, तो दशमी का क्यों नहीं?
तिथियों पर मतभेद का संबंध सूर्योदय से है। शास्त्रों में सूर्योदय के बाद जो तिथि रहती है, उसे मान्य बताया गया है। कुछ लोगों का तर्क है कि शनिवार को सूर्योदय के बाद कुछ वक्त तक ही अष्टमी तिथि रहेगी। इसके बाद नवमी लग जाएगी। यह भी अगले दिन सूर्योदय के बाद के कुछ समय तक ही मान्य रहेगी। शहर में जगह-जगह इसी दिन रावण वध की भी तैयारी है। शास्त्रोक्त मान्यता के मुताबिक अष्टमी यदि 24 तारीख और नवमी 25 तारीख को मनाई जानी चाहिए तो फिर विजयादशमी कैसे 25 तारीख को मनाई जा सकती है। सूर्योदय व्यापिनी मानते हुए इसे भी अगले दिन यानी 26 अक्टूबर को मनाया जाना चाहिए।
जवाब – हर तिथि सूर्य देखकर तय नहीं की जाती, सबका अलग महत्व
ज्योतिषाचार्य डॉ. दत्तात्रेय होस्केरे का कहना है कि तिथियां सूर्योदय के 16 दंड (24 सेकंड) बाद तक मान्य होती हैं। 24 और 25 अक्टूबर को सूर्योदय 6.07 बजे होगा। पहले दिन अष्टमी तिथि 6.58 बजे यानी सूर्योदय के 51 मिनट बाद तक और दूसरे दिन नवमी सुबह 7.41 बजे यानी सूर्योदय के 1.34 घंटे बाद तक मान्य रहेगी। इसीलिए अष्टमी शनिवार और नवमी रविवार को ही मनाई जाएगी। दशहरा भी रविवार को ही मनाया जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि हर तिथि सूर्योदय व्यापिनी नहीं होती। प्रदोष व्रत और संकष्टी चतुर्थी जैसी कुछ तिथियां सायंकालीन व्यापिनी मानी गई हैं और विजयादशमी भी इनमें से एक है।
शरद पूर्णिमा 30 को मनेगी या 31 को इस पर भी संशय
इधर, नवरात्रि के बाद मनाए जाने वाले शरद पूर्णिमा को लेकर भी इस बार संशय की स्थिति है। इसकी वजह भी तिथियों का फेर है। ऐसे तो पूर्णिमा 31 तारीख को पड़ रही है, लेकिन ज्योतिषियों का कहना है कि इसे 30 तारीख को ही मनाना उत्तम होगा क्योंकि 31 तारीख की रात प्रतिपदा तिथि विद्यमान रहेगी।