तीन महीने में 11 सेंटर खोले, 64 को दिया रोजगार

जशपुर. लॉकडाउन की वजह से नौकरी जाने वालों के लिए जशपुर की सावी बघेल किसी प्रेरणा से कम नहीं है। नौकरी जाने के बाद सावी ने हार नहीं मानी और अपनी बहन गीता बघेल के साथ मिलकर मशरूम का उत्पादन शुरू किया। सिर्फ तीन माह के भीतर ही दोनों बहनों ने शहर व आसपास के गांव में मशरूम उत्पादन के 11 सेंटर खोल दिए हैं। इन सेंटरों के जरिए अब तक 64 लोगों को रोजगार मिल चुका है, जिसमें 60 महिलाएं हैं। सावी और गीता ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन कर रहीं हैं। दोनों बहनों ने तीन माह पहले जुलाई में सबसे पहले सारूडीह गांव में एक गोठान के कमरे को ठीक कराकर मशरूम का उत्पादन शुरू किया था। इसके बाद मशरूम उत्पादन सेंटर की चैन बनाने का निर्णय लिया, ताकि अन्य लोग भी जो बेरोजगार हैं, उन्हें रोजगार मिल सके। सारूडीह के बाद सावी और गीता ने शहर के डीपाटोली में महिलाओं को मशरूम उत्पादन के लिए तैयार किया। यहां भी बात बन गई। इसके बाद दोनों बहनें रूकी नहीं और एक के बाद एक 11 मशरूम उत्पादन सेंटर खड़े कर दिए। वर्तमान में सारूडीह के अलावा शहर के डीपाटोली में 2, घोलेंग में 3, राईपाठ में 2, गम्हरिया में 1, पुरनानगर में 1, डोंड़काचौरा में 1 सेंटर खुल चुके हैं। मशरूम उत्पादन से अब कमाई भी शुरू हो चुकी है। सावी ने बताया कि सारूडीह में पहली फसल निकल चुकी है। पहली फसल की सेलिंग में ही सेंटर लगाने की लागत वसूल हो चुकी है और अब जो फसल निकल रही है उससे कमाई हो रही है। मशरूम के एक सेंटर से साल में तीन से 4 बार उत्पादन लिया जा सकता है।
मशरूम से बने पैकेट प्रॉडक्ट की है प्लानिंग
सावी बघेल ने बताया कि उनका यह काम लगातार चलेगा। क्षेत्र मेें अब तक लोग बटन मशरूम का ही सेवन करते हैं पर उन्होंने इससे अलग ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन शुरू किया है। गांव-गांव में जब महिलाओं का ग्रुप इस काम से जुड़ेगा और उत्पादन बढ़ेगा तो मशरूम से पापड़, बड़ी, अचार, मशरूम आटा सहित अन्य प्रॉडक्ट तैयार किए जाएंगे। ताकि इससे और ज्यादा लोगों को रोजगार मिले। मशरूम से यह उत्पाद बाजार में अच्छी कीमत पर बिकते हैं। सावी ने बताया कि ऑयस्टर मशरूम में दूध व साेयाबीन या मांस से भी कई गुना अधिक प्रोटीन होता है। यह प्रोटीन का बेहतर स्त्रोत है।
ऐसे हुई शुरुआत
सावी बघेल ने बताया कि वह रायपुर में एक कंपनी में नौकरी करती थी। लॉकडाउन में उसकी नौकरी चली गई और वह घर जशपुर आ गई। बेरोजगार बैठना उसे पसंद नहीं गया। बहन गीता जो शिक्षक हैं ने साथ मिलकर कुछ नया करने का सुझाव दिया। कई तरह के बिजनेस आइडिया दिमाग में थे पर सावी और गीता कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे दूसरों को भी रोजगार मिल सके। फिर उन्होंने मशरूम उत्पादन को चुना। सावी ने बताया कि इसी बीच मशरूम उत्पादन की दिशा में काम करने वाले रायपुर के आशीष पांडेय से पहचान हुईं। आशीष से सावी व गीता ने मशरूम उत्पादन व मशरूम से बनने वाली अन्य खाद्य सामग्रियों को बनाने की ट्रेनिंग ली। सारूडीह के हरीश बघेल से बातचीत हुई जो मुंबई से लॉकडाउन के कारण जशपुर लौटे थे। हरीश इस काम के लिए गोठान में जगह दी।
संदेश…दूसरों के भरोसे ना बैठें खुद कुछ करें
सावी और गीता ने संदेश दिया है कि बढ़ती जनसंख्या व बेरोजगारी के इस दौर में सरकार या किसी अन्य के भरोसे बैठना खुद से बेइमानी है। सरकार कितनों को नौकरी देगी। इससे बेहतर है कि खुद कुछ ना कुछ करें और आत्मनिर्भर बनें, क्योंकि व्यक्ति के विकास से राष्ट्र का विकास संभव है।

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